गणेश चतुर्थी Ganesh chaturthi |The festival of wealth and prosperity – 2023
गणेश चतुर्थी (Ganesh chaturthi)
गणेश का अर्थ होता है गणों का ईश ।गणेश चतुर्थी भगवान श्री गणेश जी के जन्म के उपलक्ष में मनाई जाती है गणेश चतुर्थी यह हिंदू त्योहारों में एक महत्वपूर्ण त्यौहार है।
गणेश पुराण के अनुसार गणेश जी का अवतार भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को हुआ था
भारत देश के अलग-अलग प्रांतों में गणेश चतुर्थी (Ganesh chaturthi ) को अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे कि गणेश उत्सव, विनायक चतुर्थी इत्यादि।
भारत के कई हिस्सों में यह त्योहार मनाया जाता है, लेकिन महाराष्ट्र-कर्नाटका में इसे सबसे धूमधाम से मनाया जाता है। पुराणों के अनुसार गणेश का जन्म इसी दिन हुआ था।
गणेश पुराण के अनुसार श्री गणेश जी का जन्म भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को हुआ था, जबकि शिवपुराण में गणेश जी का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को बताया गया है।
गणेश चतुर्थी पर भगवान गणेश की बड़ी प्रतिमाओं को कई महत्वपूर्ण स्थानों पर स्थापित किया जाता है। नौ दिनों तक इस मूर्ति का पूजन किया जाता है। आसपास के लोग दर्शन करने आते हैं। नौ दिन बाद, श्री गणेश जी की प्रतिमा को बड़ी श्रद्धा पूजन, गाजे बाजों के साथ किसी पवित्र तालाबअथवा जलाशय में विसर्जित किया जाता है।
गणेश जी के जन्म की कथा –
शिव पुराण में वर्णन मिलता है कि माता पार्वती जी ने स्नान करने के पूर्व अपने मैल से एक बालक को उत्पन्न किया, और उसे अपना द्वारपाल बना दिया। उसका नाम ‘गणेश’ रखा। पार्वती ने उससे कहा- हे पुत्र तुम एक मुगदल लेकर द्वार पर बैठ जाओ। मैं भीतर जाकर स्नान कर रही हूँ। जब तक मैं स्नान न कर लूं, तब तक तुम किसी भी पुरुष को भीतर मत आने देना।
और उसे अपना द्वारपाल बना दिया। बालक से कहा कि किसी को भी भीतर प्रवेश ना करने दिया जाए । जब शिवजी वहां आए तो बालक ने उन्हें रोका। काफी प्रयत्न करने पर भी शिवजी भीतर प्रवेश ना कर सके , इससे शिवजी क्रोधित हो गए ।
बालक और शिव जी के बीच भयंकर युद्ध हुआ । यह युद्ध काफी समय तक चला लेकिन इसका नतीजा नहीं निकला। अंत में भगवान शंकर ( शिवजी का एक नाम ) ने क्रोधित होकर उस बालक का सिर अपने त्रिशूल से काट दिया। यह सब देखकर मां भगवती शिवजी पर क्रुद्ध हो गई।
मां भगवती को क्रोधित देखकर सभी देवी देवता भयभीत हो गए, और फिर देवर्षि नारद की सलाह के अनुसार उन्होंने मां जगदंबा की स्तुति की और उन्हें शांत किया । भगवान शिव के निर्देशानुसार श्री विष्णु जी उत्तर दिशा में जाकर गज ( हाथी) के बालक का सिर काट कर लाया और भगवान मृत्युंजय ( शिवजी का एक नाम ) ने उसी कटे हुए हाथी का सिर बालक के धड़ पर लगाकर बालक को पुनर्जीवित किया।
गणेश चतुर्थी की एक अन्य कथा
एक समय भगवान आशुतोष और मां पार्वती नर्मदा जी के तट पर विहार कर रहे थे, और वहां एक सुंदर स्थान पर दोनों चौपड़ खेलने लगे । शिवजी ने कहा कि इस खेल के जीत- हार का निर्णय कौन देगा।
यह सुनकर मां पार्वती ने घास की कुछ तिनके बटोर कर एक पुतला बनाया और उसमें पान प्राण प्रतिष्ठा की, और कहा कि बेटा हम चौपड़ खेलना चाहते हैं, और हमारी हार जीत के साक्षी तुम हो। खेल के अंत में कौन जीता और कौन हारा इसका निर्णय तुम्हे लेना है।
जब खेल समाप्त हुआ तो तीनों ही बार मां पार्वती जीत गई और महादेव जी हार गए। लेकिन उस बालक ने महादेव जी को विजय बताया । इससे मां पार्वती जी ने क्रुद्ध होकर उस बालक कोएक पैर से लंगड़ा कर दिया और कीचड़ में पड़े रहने का और दुख भोगने का श्राप दिया ।
इससे वह बालक मां पार्वती जी से बार-बार क्षमा मांगने लगा और शाप से मुक्ति का उपाय बताने को की प्रार्थना की। तब मां पार्वती जी को उस पर दया आ गई और उन्होंने कहा कि यहां कुछ नाग कन्या गणेश पूजन करने आएगी उनके उपदेश से तुम गणेश व्रत करना और फिर तुम मुझे प्राप्त करोगे।
श्री गणेश की पूजन की विधि
गणेश जी के पूजा में वेद मंत्र का उच्चारण किया जाता है किंतु जिन्हें वेद मंत्र ना आते हो वह सिर्फ भगवान के नाम का उच्चारण भी कर सकते हैं। गणेश चतुर्थी पूजन में सबसे पहले किसी पवित्र सरोवर अथवा नदी के जल से स्नान करने के पश्चात पितांबर पहनकर आसन में पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठ जाए और निम्न प्रकार का मंत्र बोलकर आचमन करें।
ॐ केशवाय नमः ॐ नारायणाय नमः ॐ माधवाय नमः
आचमन करने के बाद हाथ में जल लेकर ओम ऋषि केशवाय नमः बोलकर हाथ धो ले। हाथ धोने के बाद पवित्री धारण करें और बाएं हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ से अपने ऊपर और पूजन सामग्री पर जल का छिड़काव करें।
दाहिने हाथ में जल ,सुपारी, सिक्का, पुष्प एवं अक्षत लेकर हम जिस निमित्त पूजा कर रहे हैं, उसका मन में उच्चारण करें ।और सारी सामग्री गणेश जी के सामने रख दे। अब हाथ में अक्षत लेकर श्री गणेश जी का ध्यान करें और 11 बार ओम श्री गणेशाय नमः ओम श्री गणेशाय नमः इस तरह का उच्चारण करें।
पश्चात भगवान गणेश जी को जल से स्नान कराएं फिर दही चढ़ाएं, फिर से जल से स्नान कराएं , फिर शक्कर चढ़ाएं और अंत में चंदन खोलकर भगवान पर चढ़ाएं। इसके बाद पुनः शुद्ध जल डालकर भगवान को शुद्ध करें और उन्हें एक अच्छे आसन पर विराजमान करें ।
भगवान गणेश जी पर वस्त्र चढ़ाएं , यज्ञोपवीत चढ़ाएं। बाद में जल छोड़ें । मौली चढ़ाएं फिर से जल छोड़ दें । गणेश जी को चंदन लगाएं, चावल चढ़ाए और फूल माला से सुसज्जित करें। भगवान गणेश जी पर दुर्वा चढ़ाएं ,सिंदूर चढ़ाएं, अबीर गुलाल, हल्दी इत्यादि भी चढ़ाए। कुछ सुगंधित इत्र भी चढ़ाएं। फिर भगवान को धूप दीप दिखाएं और फिरॐ केशवाय नमः बोलकर, हाथ धोकर भगवान को नैवेद्य चढ़ाएं और और ऋतु फल भी चढ़ाए । भगवान को लॉन्ग इलायची सुपारी इत्यादि अर्पित करें । दक्षिणा चढ़ाकर भगवान श्री गणेश जी की आरती गाएं।
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गणेश पूजन में तुलसी का उपयोग ना करें
तुलसी को भगवान गणेश की पूजा में उपयोग नहीं किया जाता है। तुलसी की पूजा करने से भगवान गणेश नाराज़ होते हैं। गणेश चतुर्थी पर तुलसी का उपयोग क्यों नहीं किया जाता है, आइए जानें।
प्राचीन कथा के अनुसार एक बार भगवान श्री गणेश समुद्र के तट पर तपस्या कर रहे थे वही तुलसी भी विचरण कर रही थी उन्होंने गणेश जी की सुंदरता को देखा और उनके सामने शादी का प्रस्ताव रखा इससे कम गणेश जी की तपस्या भंग हो गई वे तुलसी जी पर क्रोधित हो गए ।
गणेश जी ने विवाह प्रस्ताव को ठुकरा दिया विवाह प्रस्ताव को ठुकराने पर तुलसी जी अत्यंत निराश हुई एवं क्रोध से श्री गणेश जी को श्राप दिया कि उनके दो विवाह होंगे । इस के बदले गणेश जी ने भी तुलसी जी को श्राप दे दिया कि तुम्हारा विवाह एक राक्षस से होगा । बाद में तुलसी जी ने भगवान गणेश जी से माफी भी मांगी। इस घटना के बाद तुलसी जी को भगवान श्री गणेश की पूजा में उपयोग में नहीं लाया जाता है।
श्री गणेश जी की आरती
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
एकदन्त दयावन्त चारभुजाधारी
माथे पर तिलक सोहे मूसे की सवारी।
पान चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा
लड्डुअन का भोग लगे सन्त करें सेवा॥
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
अँधे को आँख देत कोढ़िन को काया
बाँझन को पुत्र देत निर्धन को माया।
‘सूर’ श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
दीनन की लाज राखो, शम्भु सुतवारी
कामना को पूर्ण करो, जग बलिहारी॥
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
गणेश जी की एक अन्य आरती
गणपति की सेवा मंगल मेवा, सेवा से सब विघ्न टरैं। तीन लोक के सकल देवता, द्वार खड़े नित अर्ज करैं॥ गणपति की सेवा मंगल मेवा…।
रिद्धि-सिद्धि दक्षिण वाम विराजें, अरु आनन्द सों चमर करैं। धूप-दीप अरू लिए आरती भक्त खड़े जयकार करैं॥ गणपति की सेवा मंगल मेवा…।
गुड़ के मोदक भोग लगत हैं मूषक वाहन चढ्या सरैं। सौम्य रूप को देख गणपति के विघ्न भाग जा दूर परैं॥ गणपति की सेवा मंगल मेवा…।
भादो मास अरु शुक्ल चतुर्थी दिन दोपारा दूर परैं। लियो जन्म गणपति प्रभु जी दुर्गा मन आनन्द भरैं॥ गणपति की सेवा मंगल मेवा…।
अद्भुत बाजा बजा इन्द्र का देव बंधु सब गान करैं। श्री शंकर के आनन्द उपज्या नाम सुन्यो सब विघ्न टरैं॥ गणपति की सेवा मंगल मेवा…।
आनि विधाता बैठे आसन, इन्द्र अप्सरा नृत्य करैं। देख वेद ब्रह्मा जी जाको विघ्न विनाशक नाम धरैं॥ गणपति की सेवा मंगल मेवा…।
एकदन्त गजवदन विनायक त्रिनयन रूप अनूप धरैं। पगथंभा सा उदर पुष्ट है देव चन्द्रमा हास्य करैं॥ गणपति की सेवा मंगल मेवा…।
दे श्राप श्री चन्द्रदेव को कलाहीन तत्काल करैं। चौदह लोक में फिरें गणपति तीन लोक में राज्य करैं॥ गणपति की सेवा मंगल मेवा…।
उठि प्रभात जप करैं ध्यान कोई ताके कारज सर्व सरैं। पूजा काल आरती गावैं ताके शिर यश छत्र फिरैं॥ गणपति की सेवा मंगल मेवा…।
गणपति की पूजा पहले करने से काम सभी निर्विघ्न सरैं। सभी भक्त गणपति जी के हाथ जोड़कर स्तुति करैं॥ गणपति की सेवा मंगल मेवा…।.
1 वर्ष में कितनी गणेश चतुर्थी आती है ?
1 वर्ष में कुल 24 गणेश चतुर्थी आती है । प्रत्येक महीने की कृष्ण पक्ष की और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी भी कहते हैं।
गणेश जी के माता एवं पिता का क्या नाम था ?
गणेश जी की माता का नाम पार्वती और पिता का नाम शिवजी था।
गणपति के भाई का क्या नाम था?
गणपति के भाई का नाम कार्तिकेय था|
हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य पर सर्वप्रथम किस भगवान की पूजा की जाती है?
गणेश जी की |
गणेश जी को किस का भोग लगता है?
गणेश जी को गुड़ के मोदक का भोग लगता है।
गणेश जी की पत्नियों का क्या नाम था?
गणेश जी की पत्नियों का नाम रिद्धि एवं सिद्धि था।
गणेश जी के पुत्रों का क्या नाम था?
गणेश जी को लाभ एवं शुभ नाम के 2 पुत्र थे।
गणेश जी किसकी सवारी करते है ?
गणेश जी मूषक की सवारी करते है।
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