Lahiri Mahashay- लाहिड़ी महाशय – A Mysterious and Powerful Saint – 23
लाहिड़ी महाशय Lahiri Mahashay
लाहिड़ी महाशय Lahiri Mahashay का जीवन परिचय
लाहिड़ी महाशय का पूरा नाम श्री श्यामाचरण जी लाहिरी था। लाहिड़ी महाशय जन्म एक ब्राह्मण परिवार में बंगाल राज्य के कृष्णा नगर के निकट धरनी नामक गांव में सन 1828 ईस्वी में हुआ था।
श्री । लाहिड़ी महाशय का अध्ययन काशी में हुआ था । आप संस्कृत, बांग्ला भाषा के साथ साथ अंग्रेजी का भी ज्ञान रखते थे। श्री लाहिरी महाशय जी के पिता का नाम गौर मोहन लाहिड़ी था।
श्री लाहिड़ी महाशय के पिताजी ने बाद में अपना पैतृक गांव छोड़कर बनारस रहने के लिए चले गए । बनारस में उन्होंने भगवान शिव का एक मंदिर भी बनाया। वह घर में अनुशासन , वैदिक क्रियाएं, नियमित रूप से प्रार्थना करना, लोगों की सहायता करना इत्यादि बातों में विश्वास रखते थे । यह सारे संस्कार श्री लाहिरी जी महाशय जी अपने पिताजी से प्राप्त हुए।
अपनी प्रारंभिक पढ़ाई पूर्ण करने के बाद आपने सन 1951 में जब लाहिड़ी महाशय जी की उम्र 23 वर्ष थी , तब उन्होंने तत्कालीन अंग्रेजी सरकार में लिपिक के सहायक रूप में नौकरी कर ली, और वहां उन्हें खुब पदोन्नति भी मिली ।
ऐसी अन्य रोचक जानकारी के लिए Follow Our hindidiaries.info
श्री लाहिड़ी महाशय जी ने अपने जीवन काल में किसी भी प्रकार का आश्रम अथवा संस्था स्थापित नहीं की थी . लेकिन अपने भक्तों द्वारा पश्चिम में योग के प्रति गहरी रूचि जागृत कराई थी।
महाशय जी ने कहा था कि मेरे मृत्यु के 50 वर्ष बाद मेरा जीवन परिचय लिखा जाएगा और योग का संदेश पूरे विश्व में फायदे का जो कि मनुष्य में भाईचारे की भावना को पुनः स्थापित करने में सहायक होगा।
श्री लाहिड़ी महाशय जी ने 26 सितंबर सन 1895 को बनारस में महा समाधि ली।
ठीक 50 वर्ष पश्चात उनके की गई भविष्यवाणी के अनुरूप परमहंस श्री योगानंद जी ने अमेरिका में योगी कथा अमृत लिखा और क्रिया योग तथा भाईचारे का संपूर्ण विश्व में प्रचार प्रसार किया।
रानीखेत की पहाड़ियों में लाहिड़ी महाशय Lahiri Mahashay को महावतार बाबाजी के दर्शन
लाहिड़ी महाशय Lahiri Mahashay को मिलिट्री एकाउंट्स में एक क्लर्क की नौकरी मिल गई थी। समय के साथ इनका ट्रांसफर अल्मोड़ा जिले के रानीखेत नामक स्थान पर हुआ था।
रानीखेत में एक दिन अवकाश के समय वे भ्रमण करते-करते द्रोणागिरी नामक पर्वत पर चढ़ने लगे और एक ऐसे स्थान पर पहुंचे जहां थोड़ी सी खुली जगह थी । आसपास में छोटी-छोटी गुफाएं भी थी । कहीं दूर से उन्हें किसी के द्वारा स्वयं का नाम सुनाई पड़ा । इधर-उधर देखने पर उन्हें एक गुफा के मुख पर एक तेजस्वी युवक खड़े दिखाई । तेजस्वी युवक ने लाहिड़ी महाशय Lahiri Mahashay जी से कहा कि मैंने ही तुम्हें आवाज दी थी , और तुम्हारा अल्मोड़ा में ट्रांसफर भी मैंने ही कराया है।
तेजस्वी युवक कोई और नहीं महा अवतार बाबा जी थे। फिर महा अवतार बाबा जी ने गुफा में कुछ देर विश्राम करने के संकेत दिया । कुछ समय पश्चात महावतार बाबा जी ने लाहिड़ी महाशय को पूर्व जन्मों का संपूर्ण वृतांत सुनाया और उन पर शक्तिपात किया। बाद में बाबा जी से लाहिरी महाशय को दीक्षा भी प्राप्त हुई। उस दीक्षा को हम क्रिया योग कहते हैं । क्रिया योग की विधि पूर्णतया शास्त्रोक्त है । गीता जी में भी क्रिया योग का वर्णन मिलता है।
गीता में ज्ञान, सांख्य, कर्म इत्यादि अनेक प्रकार के योग का वर्णन मिलता है , जिसमें किसी जात और धर्म का कोई बंधन नहीं होता । इसलिए श्री लाहिरी महाशय के शिष्यों में सभी धर्मों के लोग सम्मिलित है ।
श्री लाहिरी महाशय ने गीता की आध्यात्मिक व्याख्या की थी । इन्होंने वेदांत, योग ,दर्शन और अनेक संहिताओं की भी व्याख्या की। इन सब में बड़ी विशेषता यह थी कि गृहस्थ मनुष्य भी योग अभ्यास द्वारा परम शांति को प्राप्त कर भक्ति के उच्चतम शिखर पर पहुंच सकता है।
श्री लाहिरी महाशय ने धर्म के संबंध में कट्टरता के पक्षपाती नहीं थे। फिर भी आपने प्राचीन रीति रिवाजों का , नीतियों का और मर्यादा का पूर्ण तरह पालन किया। शास्त्रों में आपका अटूट विश्वास था।
1846 में श्यामा चरण लाहिड़ी का विवाह श्रीमती काशी मोनी से हुआ।
श्री लाहिड़ी जी महाशय के प्रमुख शिष्य
वैसे तो श्री लाहिरी महाशय जी के हजारों हजार शिष्य हुए ,लेकिन उनमें से श्री युक्तेश्वर गिरि जी महाराज , श्री केशवानंद जी महाराज और श्री प्रणवानंद जी महाराज के नाम मुख्य है।
श्री लाहिड़ी महाशय जी द्वारा लिखे गए ग्रंथ एवं प्रवचन
वैसे तो श्री लाहिरी महाशय के प्रवचनों का पूर्ण संग्रह , कहानी प्राप्त नहीं है । फिर भी गीता, उपनिषद ,संहिता इत्यादि पर आपने अनेकों अनेक व्याख्या की , जो की बांग्ला भाषा में उपलब्ध है। आपने श्रीमद् भागवत गीता का भी हिंदी में अनुवाद का आदेश शिष्य श्री भूपेंद्रनाथ सान्याल को दिया था। श्री लाहिरी महाशय की अधिकतर रचनाएं बांग्ला भाषा में है।
श्री लाहिरी महाशय जी के जन्म स्थान का नाम बताइए?
श्री लाहिरी महाशय जी का जन्म बंगाल के धरनी नामक ग्राम में 30 सितंबर सन 1888 को हुआ था ।
श्री लाहिरी महाशय जी के प्रमुख शिष्यों के नाम क्या थे ?
श्री युक्तेश्वर गिरि जी महाराज , श्री केशवानंद जी महाराज और श्री प्रणवानंद जी महाराज के नाम मुख्य है।
श्री लाहिड़ी महाशय जी का स्वर्गवास कब हुआ था ?
श्री लाहिड़ी महाशय जी ने 26 सितंबर सन 1895 को बनारस में महा समाधि ली।