Maha avataar Babaji महावतार बाबाजी – |A Great Miraculous and Boundless Yogi|-4
Maha avataar Babaji महावतार बाबाजी
महावतार बाबाजी – Maha avataar Babajiके नाम से मशहूर यह योगी पौराणिक, कालातीत और प्रबुद्ध आत्मा के रूप में जाने जाते हैं। महावतार बाबाजी के अनुयायियों और शिष्यों ने उन्हें देवदूत की संज्ञा देकर सम्मानित किया है।
अवतार नाम से ही ज्ञात होता है कि इन महान योगी का जन्म किसी माता की कोख से ना होते हुए इन्होंने इस धरा पर अवतार ही लिया होगा।
बाबाजी आध्यात्मिक और भौतिक दोनों प्रकार की क्षमताएं रखे थे। महावतार बाबा जी के जन्म और जीवन से संबंधित कोई ठोस ऐतिहासिक प्रमाण तो नहीं मिलते हैं, परंतु जिन जिन योगियों ने बाबाजी के दर्शन किए हैं उनके द्वारा लिखी गई आत्मकथा ओं के अनुसार महावतार बाबा जी की दिव्य झलक का हम अनुभव कर सकते हैं।
हम जैसे आम समझ वाले मनुष्य को अवतारी पुरुष की विशेषताएं इतनी जल्दी नजर नहीं आती है। फिर भी कभी-कभी ऐसा कुछ घटित हो जाता है कि, हमारे आश्चर्य की कोई सीमा नहीं रहती । जैसे कि किसी का शरीर तो है पर उसकी छाया जमीन पर नहीं पड़ती है, वह चलते हुए तो दिखते हैं लेकिन उनके पद चिन्ह दिखाई नहीं देते । ऐसी विशेषताएं केवल अवतरित पुरुष में ही हो सकती है।
परमहंस योगानंद जी की आत्मकथा में वर्णन-
“बाबाजी की आध्यात्मिक अवस्था मानवी आकलन शक्ति से परे है।
सन 1894 में कुंभ के मेले में श्री युक्तेश्वर गिरि महाराज जी ने महावतार बाबाजी के दर्शन किए थे । इससे पहले भी 19वीं शताब्दी के अंत में और बीसवीं शताब्दी के शुरुआत के वर्षों में कई लोगों द्वारा श्री महावतार बाबाजी के दर्शन प्राप्त करने का वर्णन मिलता है ।इन सभी द्वारा बताई गई एक बात एक दूसरे से मिलती है कि बाबा जी की उम्र लगभग 20 से 30 साल की रही होगी।
इससे पहले भी 19वीं शताब्दी के अंत में और बीसवीं शताब्दी के शुरुआत के वर्षों में कई लोगों द्वारा श्री महावतार बाबाजी के दर्शन प्राप्त करने का वर्णन मिलता है ।इन सभी द्वारा बताई गई एक बात एक दूसरे से मिलती है कि बाबा जी की उम्र लगभग 20 से 30 साल की रही होगी।
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परमहंस योगानंद जी की आत्मकथा के अनुसार श्री महावतार बाबाजी सुदूर हिमालय की कंदराओं में सैकड़ों वर्षों से निवास कर रहे हैं। कुछ वर्ष पहले तक उनके शिष्यों ने जैसे कि लाहिरी महाशय ने व्यक्तिगत रुप से श्री बाबाजी के दर्शन किए थे।
परमहंस योगानंद जी ने महावतार बाबा का चित्र भी एक चित्रकार से बनवाया था और आज जो चित्र के हम दर्शन करते हैं वह उन्हीं के द्वारा बनाया गया है । परमहंस योगानंद जी को बाबा जी ने 25 जुलाई सन 1920 में दर्शन दिए थे।
लुप्त प्राय हो चुकी क्रिया योग तकनीक को इस युग में पुनर्जीवित करने का श्रेय श्री महावतार बाबाजी को जाता है। इसी क्रिया योग की शिक्षा आज से हजारों वर्ष पूर्व श्री कृष्ण भगवान ने अर्जुन को दी थी।
महावतार बाबाजी से जुड़े हुए कुछ शिष्यों के अनुभव
परमहंस योगानंद जी की आत्मकथा में वर्णन मिलता है कि योगानंद जी के अमेरिका जाने से कुछ समय पूर्व कोलकाता में बाबाजी ने परमहंस योगानंद जी को साक्षात दर्शन दिए थे । बाबा जी ने उनसे कहा था कि सनातन धर्म एवं क्रिया योग का प्रचार करने के लिए तुम पश्चिम देशों में जाओ । चिंता मत करो, तुम वहां सुरक्षित रहोंगे । योग्यता के अनुसार ही मैंने तुम्हारा चुनाव किया है।
परमहंस योगानंद जी की आत्मकथा में यह वर्णित है कि महावतार बाबाजी ने संन्यास आश्रम एवं सनातन धर्म को पुनः संगठित करने के लिए जगतगुरू आदि शंकराचार्य तथा मध्ययुगीन संत कबीर दास जी को उन्होंने ही योग की दीक्षा दी थी।
“लाइटिंग स्टैंडिंग स्टील” नामक पुस्तक के लेखक श्री गुरुनाथ जी का भी कहना है कि महावतार बाबाजी ने उन्हें भी दर्शन दिए थे। इसी तरह सन 1954 में बद्रीनाथ में श्री एस ए ए रमैया को भी महावतार बाबाजी के दर्शन प्राप्त करने का सौभाग्य मिला था। बाबा जी द्वारा ही उन्हें 144 क्रियाओं का ज्ञान भी प्राप्त हुआ था।
आज भी उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के दूनागिरी में महावतार बाबा की गुफा हमें देखने को मिल जाती है ।इस गुफा में बहुत से संत और महापुरुषों ने ध्यान किया है। ऐसा कहा जाता है कि महावतार बाबाजी इन पहाड़ियों में भ्रमण करते करते रहते हैं ,और बहुत से योगियों को उनका दर्शन प्राप्त करने का सौभाग्य भी मिला है।
शिष्य की मृत्यु को टाल देना।
श्री योगानंद जी ने अपनी किताब में लिखा है कि एक बार जब शिष्यों के साथ धुनी के पास के पास बैठे थे, तो महावतार बाबाजी ने धुनी के पास में से एक जलती हुई लकड़ी उठाकर एक शिक्षक के कंधे पर दे मारी, जिसका विरोध कि वहां उपस्थित शिष्यों ने भी किया था। बाबा जी ने बताया कि ऐसा करने से आज जो इसकी मृत्यु होने वाली थी वह टाल दी गई है।
शिष्य की परीक्षा
परमहंस योगानंद जी लिखते हैं ,कि एक बार बाबाजी के पास एक व्यक्ति दीक्षा देने की जिद करने लगा। बाबाजी के बार-बार मना करने पर भी वह नहीं माना तब बाबा जी ने कहा कि तुम इस पहाड़ी से नीचे कूद जाओ । उस व्यक्ति ने वैसा ही किया वह पहाड़ी से कूदा। ऊंचाई से गिरने से उसकी मृत्यु हो गई उसका शव क्षत-विक्षत हो गया।
तब बाबा जी ने अपने शिष्य को कहा कि उसका शव ऊपर लेकर आओ, शिष्यों ने वैसा ही किया बाबाजी ने जब उसके शव पर हाथ फिराया तो कहते हैं कि उसका शरीर धीरे-धीरे पुनः ठीक होने लगा और उसमें जीवन वापस आ गया। बाद में बाबा जी ने उस शिष्य को कहा कि यह तुम्हारी परीक्षा थी अब तुम मेरी परीक्षा में खरे उतरे हो और आज से तुम हमारे शिष्य मंडल के सदस्य हो गए हो।
एक अन्य शिष्य गोविंद जी के अनुसार श्री महावतार बाबाजी का जन्म 30 नवंबर सन 203 में श्रीलंका में हुआ था उनके माता-पिता ने इस बालक का नाम नागराज रखा था। इस बात की जानकारी
योगी ए एस एस रमैया और वीटी नीलकंठन को सन 1953 में श्री नागराज बाबा जी ने दी थी।
कुछ विद्वानों का मत है कि महावतार बाबाजी का जन्म तमिलनाडु के पारंगीपेट्टाई में हुआ था और उनके गुरु श्री बोगर थे
बीसवीं शताब्दी के शुरुआत में उनके मुख्य शिष्यों मे से एक लाहिड़ी महाशय जी भी एक थे , जिनके द्वारा क्रिया योग विद्या का पुनरुद्धार हुआ।
महावतार बाबाजी का लाहिड़ी महाशय को प्रथम दर्शन-
महावतार बाबाजी के प्रमुख शिष्यों में से एक श्री लाहिरी महाशय भी थे श्री लाहिरी महाशय परमहंस योगानंद जी के गुरु स्वामी युक्तेश्वर गिरी लाहिड़ी महाशय के शिष्य थे।
महाशय रानीखेत अल्मोड़ा में मुख्य लिपिक के पद पर थे तब एक बार वह किसी पहाड़ी के रास्ते से गुजर रहे थे तब वहां उन्हें कोई पुकार रहा है ऐसी आवाज सुनाई दी। बार-बार आवाज आने पर जब श्री लाहिरी माशयने देखा तो पता चला कि यह आवाज महावतार बाबाजी ने दी थी।
बाबा जी ने श्री लाहिड़ी महाशय को क्रिया योग की दीक्षा दी थी । इस तरह अनेकों भक्त समय-समय पर श्री महावतार बाबाजी के दर्शन पा चुके हैं।
महावतार बाबाजी के चरणों में हम सभी का कोटि-कोटि नमन। श्री महावतार बाबाजी का आशीर्वाद हम सभी पर हमेशा बना रहे।
महावतार बाबाजी के शिष्यों के क्या नाम थे ?
महावतार बाबाजी के प्रमुख शिष्य में श्री लाहिरी महाशय, एस एस रमैया, श्री युक्तेश्वर जी महाशय, श्री परमहंस योगानंद जी महाराज और श्री एम यह कुछ प्रमुख शिष्य थे।
क्रिया योग क्या है ?
क्रिया योग यह ईश्वर को समझने की एक वैज्ञानिक तकनीक है।
श्री महावतार बाबाजी ने क्रियायोग की दीक्षा किससे ली थी?
बद्रीनाथ की यात्रा के दौरान श्री महावतार बाबाजी के गुरु बोगर नाथ जी और अगस्त्यमुनि ने उन्हें क्रिया योग की शिक्षा दी थी।
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