Devshayani Ekadashi 2025:जब भगवान विष्णु करते हैं चार महीने की नींद! पंढरपुर में भक्ति का सागर उमड़ता है ।
Devshayani Ekadashi 2025
तारीख याद रखिए – 6 जुलाई 2025, रविवार, जब आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी पर करोड़ों भक्तों की आस्था अपने चरम पर होगी। यही है वो दिन, Devshayani Ekadashi 2025 , जब भगवान विष्णु खुद चार महीने की योगनिद्रा में चले जाते हैं और धरती पर शुभ कार्यों पर ‘ब्रेक’ लग जाता है।

🛏️ ‘देव’ मतलब भगवान और ‘शयनी’ मतलब नींद – सुनिए देवशयनी का असली मतलब!
नाम बड़ा ही दिलचस्प है – देवशयनी!
‘देव’ यानी खुद ईश्वर और ‘शयनी’ यानी सोने वाले।
यानि आज का दिन है ईश्वर की नींद का पहला दिन! विष्णु जी आज से सीधा कार्तिक महीने की एकादशी तक लंबी नींद में चले जाते हैं।
🎉 आखिर क्यों मनाते हैं देवशयनी एकादशी का ये अनोखा पर्व?
कहानी बहुत रोचक है। कहते हैं कि आज ही के दिन भगवान विष्णु क्षीर सागर में विश्राम करने चले जाते हैं। जब भगवान सो जाएं, तो क्या काम करें! इसलिए शादी-ब्याह, गृह प्रवेश जैसे शुभ कामों पर विराम लग जाता है। यह दिन धार्मिक चक्र का टर्निंग पॉइंट है।
🔥 देवशयनी एकादशी का महत्त्व – केवल उपवास नहीं, ये तो आत्मा की सफाई का मौका है!
- हर पाप से मुक्ति, हर बंधन से आज़ादी – यही है इस व्रत की ताकत।
- यह दिन केवल उपवास का नहीं, अपने मन और आत्मा की सफाई का भी है।
- भगवान के चरणों में बैठने, ध्यान करने और भविष्य को रोशन करने का ज़रिया है ये एकादशी।
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📅 एक नजर में –Devshayani Ekadashi 2025 तिथि और पारण का समय
- एकादशी आरंभ: 5 जुलाई, रात 09:49 बजे
- एकादशी समाप्त: 6 जुलाई, रात 07:59 बजे
- व्रत पारण (उपवास तोड़ना): 7 जुलाई, सुबह 5:50 से 8:30 बजे तक
🛕 पूजन विधि – कैसे करें भगवान विष्णु को खुश?
- सूर्योदय से पहले स्नान करें, पीले वस्त्र पहनें।
- घर में विष्णु जी की मूर्ति या फोटो के आगे दीप जलाएं।
- तुलसी के पत्तों के साथ भगवान को भोग लगाएं।
- विष्णु सहस्रनाम या “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जप करें।
- रात को कीर्तन, भजन और जागरण करें – नींद नहीं, आज तो भक्ति की रात्रि है।
🍽️ व्रत नियम – ये भूलना नहीं है!
- फलाहार या निर्जल उपवास करें, जैसा सामर्थ्य हो।
- मन, वचन और कर्म से शुद्ध रहें।
- किसी को दुख न दें, गुस्सा न करें।
- भगवान के प्रति पूर्ण श्रद्धा और समर्पण रखें।
🔮 चातुर्मास क्या है और इसमें क्या नहीं करना चाहिए?
देवशयनी एकादशी से चातुर्मास की शुरुआत होती है, जो कि चार महीनों का धार्मिक व्रतकाल होता है – आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद और आश्विन।
इन चार महीनों में:
- विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, यज्ञ जैसे शुभ कार्य वर्जित होते हैं।
- साधु-संत और गृहस्थ भक्त अपने स्थान पर स्थिर होकर साधना करते हैं।
- शुद्ध भोजन, सात्विक जीवन और संयम पर विशेष बल दिया जाता है।
🌧️ देवशयनी एकादशी और मानसून का संबंध
आषाढ़ माह में वर्षा ऋतु शुरू होती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, इसी समय भगवान विष्णु शयन में जाते हैं ताकि धरती पर वर्षा सुचारू रूप से हो और जीव-जंतुओं को पोषण मिल सके।
देवताओं के शयन का यह काल प्रकृति के संतुलन और मानव जीवन की शुद्धि के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है।
🏞️ पंढरपुर वारी यात्रा की परंपरा – 700 साल पुराना जश्न
- वारी यात्रा में लाखों वारकरी महाराष्ट्र के कोने-कोने से पैदल चलते हुए पंढरपुर पहुंचते हैं।
- यह पदयात्रा संत तुकाराम और संत ज्ञानेश्वर की पालखियों के साथ निकलती है।
- हर भक्त “ज्ञानोबा माऊली तुकाराम” का जयघोष करता है।
- यह दुनिया की सबसे बड़ी पैदल धार्मिक यात्रा मानी जाती है।
📚 पुराणों में देवशयनी एकादशी की कथा
देवशयनी एकादशी से जुड़ी कथा भगवान विष्णु और राजा हरिश्चंद्र से जुड़ी है।
कहानी के अनुसार एक बार एक राक्षस ने स्वर्ग और पृथ्वी दोनों में आतंक मचा दिया। विष्णु जी ने उस दैत्य को मारने के बाद विश्राम करने का निर्णय लिया। तभी से यह दिन “शयन एकादशी” के रूप में मनाया जाता है।
यह कथा पद्म पुराण और स्कंद पुराण में विस्तृत रूप से वर्णित है।
🎨 लोक परंपराओं में उत्सव का रंग
- महाराष्ट्र, कर्नाटक और गोवा जैसे राज्यों में इस दिन लोक नृत्य, कीर्तन और भक्ति संगीत का आयोजन होता है।
- लोग अपने घरों में रंगोली बनाते हैं, तुलसी विवाह की तैयारी करते हैं और भजन मंडलियों में भाग लेते हैं।
- देवशयनी एकादशी को गांव-गांव में हरि कथा, रामायण पाठ और समूहिक पूजा का आयोजन भी किया जाता है।
🧘♂️ आध्यात्मिक दृष्टिकोण से महत्व
- यह समय आत्मनिरीक्षण, आत्मसंयम, और ध्यान-साधना के लिए उपयुक्त होता है।
- कहते हैं कि यदि कोई व्यक्ति इस एकादशी से शुरू करके चातुर्मास के दौरान सत्कर्म और साधना करे, तो उसे जन्मों-जन्मों का पुण्य मिलता है।
- यह वह समय है जब ईश्वर करीब होते हैं, बस ज़रूरत है सच्चे भाव और समर्पण की।
🗣️ लोकप्रिय मान्यता
माना जाता है कि जो भी श्रद्धालु इस दिन सच्चे मन से व्रत रखता है और विष्णु भक्ति करता है, उसे जीवन में किसी भी प्रकार का संकट नहीं आता।
यह एकादशी कर्ज मुक्ति, रोग शांति और गृह क्लेश से मुक्ति दिलाने वाली मानी जाती है।
🚩 पंढरपुर की वारी – महाराष्ट्र का भक्ति महाकुंभ
भक्ति का ऐसा ज्वार कहीं और नहीं दिखेगा!
पांडरपुर में विट्ठल मंदिर पर लाखों लोग नंगे पांव वारी (पदयात्रा) करते हैं। डिंडी, फुगडी, अभंग, और तुकायाचं नाम गूंजता है हर दिशा में।
ये सिर्फ यात्रा नहीं, ये है श्रद्धा की परीक्षा और प्रेम की पराकाष्ठा।
🔱 देवशयनी एकादशी क्यों है सबसे खास?
- चातुर्मास की शुरुआत – यानी आध्यात्मिक तप और त्याग का आरंभ।
- भगवान की नींद का पहला दिन – यानी सृष्टि का नया अध्याय।
- इस एकादशी का व्रत करने से सभी एकादशियों का फल प्राप्त होता है।
- ये दिन है आत्मा को विष्णु में विलीन करने का पर्व।
📿 देवशयनी एकादशी के मंत्र – जपिए और जोड़िए ईश्वर से संबंध
- “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय”
- “ॐ विष्णवे नमः”
- “ॐ श्री विट्ठलाय नमः”
- “हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे, हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे”
🔚 निष्कर्ष – उठिए, सजिए और डूब जाइए भक्ति की इस Devshayani Ekadashi 2025 में!
देवशयनी एकादशी सिर्फ एक तिथि नहीं, ये है आत्मिक क्रांति का दिन।
ये दिन है जब संसार सो जाता है और आत्मा जागती है।
तो 6 जुलाई 2025 को भूलिए दुनियादारी और कीजिए भगवान विष्णु के चरणों में आत्मसमर्पण।
क्योंकि जब भगवान सोने जाते हैं, भक्तों का परम जागरण शुरू होता है!