Thursday, September 19, 2024
BlogIndian CultureSantभारत के महान संत

Dyaneshwar – An Eternal Wisdom- ज्ञानेश्वर-महान संत और धार्मिक दार्शनिक-1

Dyaneshwar

Dyaneshwar ज्ञानेश्वर- भारत का इतिहास और संस्कृति धर्म, तात्त्विकता और दार्शनिकता की धरोहर से भरपूर है। इस धार्मिक और तात्त्विक धर्मक्षेत्र में अनगिनत महापुरुषों और संतों ने अपने विचार और उपदेशों के माध्यम से मानव जीवन को दिशा दी है। ज्ञानेश्वर एक ऐसा महान संत थे, जिन्होंने महाराष्ट्रीय संत भक्तिकाल के प्रमुख दिग्गजों में अपनी विशेष पहचान बनाई और उनके विचारधारा और ग्रंथन काव्य का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए। इस लेख में हम ज्ञानेश्वर के जीवन, उपदेश, और उनके महत्वपूर्ण ग्रंथों के बारे में विस्तार से जानेंगे।

Dyaneshwar

Dyaneshwar ज्ञानेश्वर: का जन्म 1275 में यादव राजा रामदेवराव के शासनकाल के दौरान महाराष्ट्र में हुआ था। उनका जन्म गोदावरी नदी के तट पर स्थित अपेगांव गांव में हुआ था। वे एक मराठी भाषी देशस्थ ब्राह्मण परिवार से थे, जिनके पिता का नाम विट्ठलनाथ और माता का नाम रुख्माबाई था।

ज्ञानेश्वर का जन्म कृष्ण जन्माष्टमी के शुभ दिन पर हुआ था, जो कि हिन्दू परंपराओं में भगवान कृष्ण के जन्म के रूप में मनाया जाता है। इस संदर्भ में, ज्ञानेश्वर का जन्म एक बहुत ही पवित्र समय में हुआ था।

Dyaneshwar ज्ञानेश्वर: के पिता विट्ठलपंत नाथ   योगी संप्रदाय थे और अत्यधिक धार्मिक होने के कारण, वह वाराणसी की तीर्थयात्रा पर गए थे। वहां उनकी मुलाकात एकआध्यात्मिक शिक्षक से हुई में दीक्षा दी गई । उन्होंने अपनी पत्नी की सहमति के बिना घर त्याग करने का फैसला किया ।

विट्ठलपंत ने अपनी पारंपरिक जीवनशैली को छोड़कर भगवद गीता के सिद्धांतों का पालन करने के लिए एक भिक्षु बनने का निर्णय लिया था। जब रामाश्रम को इस निर्णय का पता चला, तो उन्होंने विट्ठलपंत को अपनी पत्नी रखुमाबाई के पास वापस जाने और गृहस्थ के रूप में अपने कर्तव्यों का पालन करने का सुझाव दिया। इसके परिणामस्वरूप, विट्ठलपंत ने अपने भिक्षु बनने के इरादे को छोड़ दिया और वे अपने परिवार के साथ गृहस्थ जीवन का आदर्श दिखाने लगे।

ज्ञानेश्वर

विट्ठलपंत और रखुमाबाई के बीच चार बच्चे हुए, जिनमें एक बेटी भी शामिल थी। इससे स्पष्ट होता है कि उन्होंने गृहस्थ जीवन का आदर्श दिखाने के लिए अपने निर्णय को पूरी तरह से अपनाया।

ज्ञानेश्वर और उनके भाई-बहनों को नाथ हिंदू परंपरा द्वारा स्वीकार किया गया और उसमें दीक्षित किया गया

ऐसी अन्य रोचक जानकारी के लिए Follow Our hindidiaries.info

Dyaneshwar ज्ञानेश्वर: ने बहुत छोटी आयु में संस्कृत और सांस्कृतिक धर्म की पढ़ाई की । उनका उपनयन संस्कार १३ वर्ष की आयु में हुआ और इसके बाद वे वाराणसी गए, जहां उन्होंने अध्ययन किया और अपने ज्ञान को विकसित किया।

Dyaneshwar ज्ञानेश्वर – उपदेश और ग्रंथ:

ज्ञानेश्वर का महत्वपूर्ण योगदान उनके द्वारा लिखे गए ग्रंथों में है। उन्होंने मराठी भाषा में लिखे ग्रंथों के माध्यम से भगवद गीता के सिद्धांतों को आम जनता के लिए समझाने का प्रयास किया। इनमें से कुछ मुख्य ग्रंथ निम्नलिखित हैं:

ज्ञानेश्वरी (Dynaneshwari):

यह ग्रंथ ज्ञानेश्वर द्वारा लिखा गया है और इसमें वे भगवद गीता के श्लोकों के सिद्धांतों को समझाते हैं। इस ग्रंथ को महाराष्ट्र के साहित्य और धर्म का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है और इसे मराठी साहित्य का एक अद्वितीय काव्य का उदाहरण माना जाता है।

  • अमृतानुबव (Amritanubhav):

यह ग्रंथ ज्ञानेश्वर के व्यक्तिगत अनुभवों को व्यक्त करता है और भगवद गीता के दार्शनिक विचारों को व्यक्त करने का कार्य करता है।

  • भंगदेव (Abhanga Dev):

यह ग्रंथ उनके गीत और अभंगों का संग्रह है, जिन्होंने भक्ति और धार्मिकता के सिद्धांतों को व्यक्त किया।

ज्ञानेश्वर के ग्रंथों में भगवद गीता के शिक्षा को सरलता से समझाने का प्रयास करते हैं और लोगों को मार्गदर्शन देने का कार्य करते हैं। उनके ग्रंथों में भक्ति, ज्ञान, और कर्म के माध्यम से आत्मा के मुक्ति की प्राप्ति के उपाय विस्तार से विवेचित किए जाते हैं।

Dyaneshwar ज्ञानेश्वर का योगदान:

ज्ञानेश्वर के योगदान का महत्व धार्मिक, साहित्यिक, और सामाजिक दृष्टिकोण से है।

  • भगवद गीता के सिद्धांतों का समझाना: ज्ञानेश्वर ने अपने ग्रंथों के माध्यम से भगवद गीता के महत्वपूर्ण सिद्धांतों को समझाने का कार्य किया। उन्होंने गीता के अद्वितीय भावनाओं और दार्शनिक विचारों को मराठी भाषा में प्रस्तुत किया, जिससे वे आम लोगों के लिए समझने में साहस और सरलता दिखा सकते थे।
  • मराठी साहित्य का योगदान: ज्ञानेश्वर के ग्रंथ अमृतानुबव, अभंगदेव, और ज्ञानेश्वरी मराठी साहित्य के महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में माने जाते हैं। उन्होंने मराठी भाषा को ग्रंथों के माध्यम से एक महत्वपूर्ण साहित्यिक भाषा के रूप में बढ़ावा दिया और इसके लिए अत्यधिक प्रशंसा प्राप्त की।
  • भक्तिकाल का प्रमुख संत: ज्ञानेश्वर भक्तिकाल के प्रमुख संतों में से एक थे और उनके उपदेश और ग्रंथ महाराष्ट्र के लोगों के लिए आदर्श बने। उन्होंने भक्ति के माध्यम से दिव्यता की ओर अपने अनुयायियों को प्रवृत्त किया।
  • धर्म और समाज के लिए योगदान: ज्ञानेश्वर ने धर्म और समाज के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान किया। उन्होंने जातिवाद और जाति अनुसरण के खिलाफ आवाज बुलंद की और समाज में जाति-मुक्ति की प्रक्रिया को बढ़ावा दिया।

संत ज्ञानेश्वर ने अपने जीवन में ज्ञान, ध्यान, और भक्ति के माध्यम से आत्मा की महत्वपूर्ण उपलब्धियों को साबित किया और भारतीय समाज को धर्मिक और आध्यात्मिक मार्ग पर मार्गदर्शन दिया। उनके ग्रंथों का मराठी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान है और वे धर्मिकता और साहित्य के क्षेत्र में एक आदर्श बने हैं। ज्ञानेश्वर का योगदान आज भी भारतीय समाज में महत्वपूर्ण है और उनकी धार्मिक विचारधारा का प्रभाव दिली-दिली से महसूस किया जाता है।

Dyaneshwar ज्ञानेश्वर के जीवन में चमत्कारिक घटनाएं

ज्ञानेश्वर के जीवन में कई चमत्कारिक घटनाएं हुईं, जिन्होंने उनके आध्यात्मिक यात्रा को और भी अद्वितीय बनाया और उनके भक्तों को आश्चर्यचकित किया। यहां कुछ चमत्कारिक घटनाएं हैं:

  • चांगदेव को एक झील पार करना (The Miracle of Walking on Water):

ज्ञानेश्वर ने अपने भक्त चांगदेव को आत्मा के अद्वितीय अनुभव की ओर मार्गदर्शन देने के लिए प्रेरित किया था। एक दिन, ज्ञानेश्वर ने चांगदेव को एक झील के पानी पर पार करने के लिए कहा और वे बिना पानी में डूबे किए जाते हैं। यह घटना चमत्कारिक और आध्यात्मिक थी, और इससे चांगदेव ने अपने गुरु की आज्ञा का मान किया और आत्मज्ञान की ओर बढ़ने का निर्णय लिया।

  • अमृतानुबव (The Experience of Oneness):

Dyaneshwar ज्ञानेश्वर ने अपने जीवन में अमृतानुबव नामक अद्वितीय अनुभव किया, जिसमें वे अपने आत्मा को परमात्मा के साथ एक कर लिया। इस अनुभव के बाद, उन्होंने भगवद गीता के सिद्धांतों को और भी गहराई से समझा और अपने उपदेशों में व्यक्त किया।

  • चंद्रकांत या पषष्ठी (Changdev Pasashti):

Dyaneshwar ज्ञानेश्वर ने अपने भक्त चांगदेव के लिए “चंद्रकांत” या “पषष्ठी” कही जाने वाली एक कृति (काव्य) लिखी, जिसमें उन्होंने आत्मा के महत्व को और भी स्पष्ट रूप से बताया।

  • वीर शृंगार नामक तालाब के पार (Crossing the Veer Shringar Lake):

Dyaneshwar ज्ञानेश्वर की कहानी में वीर शृंगार नामक तालाब पर पार करना एक चमत्कारिक घटना है, जिसमें वे प्याला (पत्तल) की सहायता से पानी पर चलते हैं। यह चमत्कार उनके आत्मा के अनुभव की ओर प्रेरित करता है और उनके भक्तों को आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में मार्गदर्शन करता

ये चमत्कारिक घटनाएं ज्ञानेश्वर के जीवन में हुईं और उनके आध्यात्मिक यात्रा को और भी रोचक और महत्वपूर्ण बनाया। इन चमत्कारों के माध्यम से वे अपने भक्तों को आत्मा के महत्व की महत्वपूर्ण सिख दिलाते थे।

Dyaneshwar ज्ञानेश्वर- जीवित समाधि

ज्ञानेश्वर ने जीवित समाधि ग्राम आलिंदी संवत में शके १२१७ (वि. संवत १३५३, सन् १२९६) की मार्गशीर्ष वदी (कृष्ण) त्रियोदशी को ली। यह तारीख पुणे के लगभग १४ किलोमीटर दूर आलंदी ग्राम में ज्ञानेश्वर ने अपने आत्मा को परमात्मा के साथ एक किया और आत्मज्ञान की गहरी अनुभूति प्राप्त की।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!