Nalanda University शिक्षा का शिखर और पतन की कहानी
Nalanda University
नालंदा विश्वविद्यालय के नाम का चर्चा करना आम बात है। यह भारत में प्राचीन काल से बहुत ही महत्वपूर्ण शिक्षा सेवा करता था. यहाँ पर वैदिक और बौद्धिक तात्विकता दोनों को उन्नत किया गया था।
मगध साम्राज्य के समय में स्थापित होने के बाद, यह एक गुप्त अधिकार वाला महाविहार बन गया. गुप्त वंश के शासकों का सहयोग मिला जिनके वजह से यहाँ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा मिलती थी।
Nalanda University प्रमुख बिंदु
- नालंदा एक प्राचीन भारतीय शिक्षा केंद्र था जो पांचवीं शताब्दी सीई से 1200 सीई तक उत्कृष्ट शिक्षा प्रदान करता रहा।
- यह मगध साम्राज्य और गुप्त वंश के शासकों के संरक्षण में समृद्ध हुआ और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा हासिल की।
- नालंदा विश्वविद्यालय में वैदिक और बौद्ध शिक्षा दोनों का समावेश था, जिसने इसे एक अनूठे शैक्षिक केंद्र बना दिया।
- इस प्राचीन शिक्षण संस्थान का 12वीं शताब्दी में विनाश हो गया, लेकिन भारत सरकार ने 2006 में इसे पुनर्जीवित करने का फैसला किया।
- आज, नालंदा विश्वविद्यालय एक अंतर्राष्ट्रीय स्तर का शिक्षण संस्थान है जो पुराने गौरव को पुनर्स्थापित करने में लगा हुआ है।
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Nalanda University : शिक्षा का शिखर और पतन की कहानी
भारत का पहला और दुनिया का दूसरा सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय कहलाने वाले नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास अत्यंत दिलचस्प है। यह वह स्थान था जहां शिक्षा का दीपक प्रज्वलित हुआ और ज्ञान की रोशनी पूरे विश्व में फैली। 427 ईस्वी में स्थापित यह विश्वविद्यालय कैसे शिखर पर पहुंचा और फिर खाक में मिला, आइए जानते हैं इसकी पूरी कहानी विस्तार से।
स्थापना और विकास
नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त वंश के शासक कुमार गुप्त (प्रथम) ने 427 ईस्वी में की थी। उनके उत्तराधिकारियों ने इस महान शिक्षा केंद्र को संजोने और संवारने में कोई कसर नहीं छोड़ी। स्थापना के लगभग 700 सालों तक नालंदा विश्वभर में शिक्षा का प्रमुख केंद्र बना रहा। समय के साथ इसकी ख्याति बढ़ती गई और यहां देश-विदेश से विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आने लगे।
पाठ्यक्रम और विद्वान
नालंदा विश्वविद्यालय में धर्म, दर्शन, तर्कशास्त्र, चित्रकला, वास्तुकला, अंतरिक्ष विज्ञान, धातु विज्ञान और अर्थशास्त्र जैसे विषय पढ़ाए जाते थे। यहां करीबन 10 हजार विद्यार्थी एक साथ अध्ययन करते थे। चिकित्सा विज्ञान में भी यह विश्वविद्यालय अग्रणी था, जहां आधुनिक चिकित्सा पद्धति और आयुर्वेद दोनों की शिक्षा दी जाती थी।
गणित और खगोल विज्ञान में भी नालंदा ने अपनी विशेष पहचान बनाई। छठवीं शताब्दी में भारतीय गणितज्ञ आर्यभट्ट यहां के प्रमुख थे। उनकी गणित और खगोल विज्ञान की थ्योरी नालंदा के माध्यम से ही दुनिया के अन्य हिस्सों में पहुंची।
ह्वेन सांग का वर्णन
सातवीं शताब्दी में जब चीनी यात्री और विद्वान ह्वेन सांग भारत आए, तो उन्होंने नालंदा विश्वविद्यालय का दौरा किया और यहां बतौर प्रोफेसर पढ़ाया। 645 ईस्वी में चीन लौटते समय वह अपने साथ कई बौद्ध धर्म ग्रंथ लेकर गए और उनका चीनी भाषा में अनुवाद किया। ह्वेन सांग ने नालंदा विश्वविद्यालय के बारे में लिखा कि यहां एक विशाल स्तूप था, जो भगवान बुद्ध के एक प्रमुख शिष्य की स्मृति में बनाया गया था। यह स्तूप लगभग 30 मीटर ऊंचा था और सम्राट अशोक द्वारा निर्मित था।
विनाश की कहानी
नालंदा विश्वविद्यालय 1193 तक आबाद रहा, जब तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने इस पर हमला किया। उन्होंने पूरी यूनिवर्सिटी को तहस-नहस कर दिया और तीन मंजिला लाइब्रेरी में आग लगा दी, जिसमें लगभग 90 लाख किताबें और पांडुलिपियां थीं। लाइब्रेरी की आग महीनों तक जलती रही। इतिहासकारों के अनुसार, खिलजी के हमले का कारण इस्लाम को चुनौती मानना था।
खिलजी से पहले भी नालंदा विश्वविद्यालय पर दो बार हमले हुए थे। पांचवीं शताब्दी में मिहिर कुल की अगुवाई में हूणों ने और आठवीं शताब्दी में बंगाल के गौड़ राजा ने विश्वविद्यालय पर हमला किया। हालांकि, उन दोनों हमलों का मकसद लूटपाट था और विश्वविद्यालय की मरम्मत करवा दी गई थी।
खुदाई और पुनर्निर्माण
नालंदा की खुदाई में करीब 14 हेक्टेयर में विश्वविद्यालय के अवशेष मिले, जो मूल विश्वविद्यालय का केवल 10% हिस्सा है। यहां गौतम बुद्ध की कांस्य की प्रतिमा, हाथी दांत और प्लास्टर की मूर्तियां मिलीं। यह साइट अब यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल है।
2006 में नालंदा विश्वविद्यालय की पुनः स्थापना की योजना बनी और राजगीर में किराए के कन्वेंशन सेंटर में कक्षाएं शुरू हुईं। बिहार सरकार ने विश्वविद्यालय के लिए 242 एकड़ जमीन दी और अब नालंदा का खुद का कैंपस बनकर तैयार हो गया है।
Nalanda University मगध साम्राज्य में बौद्ध शिक्षा का केंद्रीय आधार
नालंदा विश्वविद्यालय का निर्माण 5वीं शताब्दी में हुआ था. इसे कुमारगुप्त ने बिहार के नालंदा जिले में बसाया।
यहाँ विभिन्न विषयों का अध्ययन किया जाता था. 2,000 से ज्यादा शिक्षक ने 10,000 से अधिक छात्रों को पढ़ाया।
नालंदा में छात्र भारत के अलावा कई अन्य देशों से भी आते थे. यहाँ पुस्तकालय छात्रों के लिए 300 कमरों के साथ था।
गुप्त वंश के संरक्षण में उन्नति का युग
गुप्त साम्राज्य का शासन समय नालंदा के विकास में महत्वपूर्ण रहा. इस स्थान पर विद्वानों और छात्रों ने अपनी भूमिका निभाई।
7वीं शताब्दी में चीन के तीर्थयात्री इयुन छवांग ने इस जगह का गौरव बढ़ाया. फिर, 13वीं शताब्दी में तुर्की आक्रमणकारियों के हमले से नुकसान हुआ।
हालांकि, 2006 में भारत सरकार ने नालंदा विश्वविद्यालय को दोबारा स्थापित किया. इससे उसकी महत्ता और भी बढ़ गई जैसा की पहले थी।
“नालंदा एक ऐसा तीर्थस्थल था, जहां उत्कृष्ट ज्ञान का संगम था।”
– चीनी तीर्थयात्री इयुन छवांग
नालंदा विश्वविद्यालय भारतीय शैक्षिक इतिहास का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है. इसका पुरातन समृद्ध संस्कृति के साथ कनेक्ट था. यहाँ का पुनर्जीवन और उन्नयन भारत के लिए गर्वशील घटना है।
Nalanda University अंतर्राष्ट्रीय छात्र समुदाय और शिक्षा की विविधता
नालंदा विश्वविद्यालय हमेशा छात्रों को खींचता था, चाहे वे भारत से हों या फिर बाहर के देशों से। इसका प्रमुख कारण यह था कि यहाँ बौद्ध शिक्षा का केंद्र था।
नालंदा में पढाई करने वाले छात्र बाद में वापस जाकर अपने देश में बौद्ध धर्म को फैलाते थे। इस विश्वविद्यालय ने नौवीं से बारहवीं शताब्दी में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर महत्व प्राप्त किया था।
इसके पुनर्निर्माण के साथ, भारती सरकार ने इस विश्वविद्यालय में पर्यावरण संरक्षण का भी ध्यान दिया। यहाँ ‘ग्रीन गार्जियनशिप’ पहल की शुरुआत हुई है, जिसमें पेड़ों की देखभाल है।
आने वाले मौसम के साथ, दो हरित पार्क भी खोले जाएंगे। इससे पर्यावरण संरक्षण के बारे में जागरूकता में बढोतरी होगी।
नालंदा के पुनरुत्थान को उच्च शिक्षा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। इसके अलावा, बोधगया ग्लोबल डायलॉग्स 2024 में विरासत और ज्ञान परंपरा को विचार किया जाएगा।
“नालंदा विश्वविद्यालय के पुनर्निर्माण से हम इसके एक बार फिर से उत्थान में मदद करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का स्वागत कर रहे हैं।”
स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना और व्यवस्थित परिसर
नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापत्य कला माधुर्य से भरपूर थी। यह बहुत बड़ा और व्यवस्थित स्थल था, जिसमें एक बड़ी दीवार घेरी हुई थी। प्रवेश के लिए यहाँ एक बड़ा द्वार था। इसे घेरे कई मठ, स्तूप, और मंदिरों के साथ था। ये सभी मंदिर में बुद्ध भगवान की मूर्तियाँ थीं।
गलियारों, मठों और कक्षों की अनूठी संरचना
नालंदा विश्वविद्यालय के केंद्रीय भाग में बड़ा स्थान था। वहाँ सात बड़े कक्ष और तीन सौ कमरे थे। वहाँ पर शिक्षा और व्याख्यान होता रहता था। खुदाई में तेरह मठ पाए गए हैं, जो इस स्थान की धनी संस्कृति दिखाते हैं।
Nalanda University वास्तुकला में समृद्ध विरासत
नालंदा विश्वविद्यालय की वास्तुकला अद्भुत और समृद्ध थी। यहाँ अपने व्यवस्थित संरचना से श्रेष्ठ था। इस स्थान पर मठ, मंदिर, कक्ष, और पुस्तकालय हैं। ये सभी स्थल उसकी विरासत का हिस्सा हैं।
नालंदा विश्वविद्यालय में बहुत सी पुस्तकें हैं। ये सभी इस महान संस्थान की शिक्षा के साथ जुड़ी हैं। इस विश्वविद्यालय ने भारतीय गुरुकुल परंपरा को आगे बढ़ाया। उसने शिक्षा के महत्व को वास्तुकला के माध्यम से दर्शाया।
Nalanda University: ज्ञानार्जन का महान केंद्र
Nalanda University भारत का प्राचीनतम शिक्षा केंद्र था. इसे गुप्त वंश ने संभाला था. यह विश्व का पहला आवासीय विश्वविद्यालय था. इसमें 10,000 छात्र एवं 2,000 अध्यापक रहते थे. छात्रों को मेरिट के हिसाब से चुना जाता था. इन्हें निःशुल्क पढ़ाई, भोजन, वस्त्र, और स्वास्थ्य सुविधाएं दी जाती थीं।
शिक्षण पद्धतियां और पाठ्यक्रम
नालंदा विश्वविद्यालय किताबों में छात्रों को यहाँ भगवान बुद्ध ने उपदेश दिए थे. छात्र यहाँ लिटरेचर, एस्ट्रोलॉजी, और धर्म सीखते थे. इसका पाठ्यक्रम विस्तृत था और इसे उच्च शिक्षाविद के रूप में माना गया।
प्रशिक्षित धर्माचार्यों और छात्रों का योगदान
Nalanda में बौद्ध धर्म के कई महान आचार्य और विद्वान थे. उनमें हर्षवर्धन, धर्मपाल, और नागार्जुन सम्मिलित थे. यहाँ के छात्र अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध थे।
निष्कर्ष
नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास गौरवमयी और प्रेरणादायक है। यह शिक्षा के महत्व और ज्ञान के प्रसार का प्रतीक है। नालंदा का पुनर्निर्माण हमें यह सिखाता है कि ज्ञान की लौ को कभी बुझने नहीं देना चाहिए। नालंदा की कहानी हमें यह भी याद दिलाती है कि हम अपने सांस्कृतिक और शैक्षिक धरोहरों की रक्षा करें और उन्हें संजोकर रखें।
भारत में शिक्षा का इतिहास गहरा और समृद्ध है। वैदिक काल से लेकर पाल राज्य तक, हमारे देश के कई युगों ने शिक्षाका के लिए अमूल्य विरासत छोड़ी है।
नालंदा विश्वविद्यालय इसी प्राचीन विरासत का हिस्सा है. यह न खड़ा गया सिर्फ़ भारत में बल्कि दुनिया भर के छात्रों को भी शिक्षित करता था।
स्रोत लिंक
- -facts/articleshow/88730245.cms – Nalanda University History: भारत में खुला था दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय, जानें नालंदा विश्वविद्यालय से जुड़ी बातें
- https://www.amarujala.com/photo-gallery/bizarre-news/nalanda-university-inauguration-know-the-nalanda-university-history-and-why-destroyed-read-here-full-story-2024-06-19 – Nalanda: दुनिया को 700 साल तक ज्ञान देता रहा नालंदा विश्वविद्यालय, जानिए खिलजी ने क्यों जलाया
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