Thursday, September 19, 2024
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Ram Mandir Ayodhya – पाच सौ वर्षो का इतिहास -24

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Ram Mandir Ayodhya

राम मंदिर का उद्घाटन अयोध्या में जल्द ही होने वाला है, 22 जनवरी को राम लला की प्रतिष्ठा Ram Mandir Ayodhya में होगी। जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस समारोह की अध्यक्षता करेंगे, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ, मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल दासराज्यपाल आनंदीबेन पटेल और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत, शामिल होंगे।

समारोह में शामिल होने के लिए क्रिकेटरों, मनोरंजन जगत के लोगों और व्यापारियों सहित 7,000 से अधिक गणमान्य व्यक्तियों को आमंत्रित किया गया है।

Ram Mandir Ayodhya

साल 1528-29 के बीच मस्जिद बनाने के लिए ‘मंदिर ध्वस्त’

अयोध्या का विवाद बाबरी मस्जिद से घिरा हुआ है। इसकी शुरुआत हुई साल 1528 में जब बाबर के सेनापति मीर बाकी ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद बनवाया। इस मस्जिद को मुगल काल की एक महत्वपूर्ण मस्जिद माना जाता था।

वैसे बाबरी मस्जिद का मॉर्डन दस्तावेजों में भी जिक्र है, जैसे साल 1932 में छपी किताब ‘अयोध्या: ए हिस्ट्री’ में भी बताया गया है कि मीर बाकी को बाबर ने ही हुक्म दिया था कि अयोध्या में राम जन्मभूमि है और यहां के मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण करवाना होगा।

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मुगल शासक बाबर के सेनापति मीर बाकी ने Ram Mandir Ayodhya के रामकोट में ‘राम के जन्मस्थान’ पर एक मंदिर को ध्वस्त करने के बाद एक मस्जिद का निर्माण किया था।जिसका उल्लेख सरकारी राजपत्रों में मिलता है

300 साल बाद भारत मे ब्रिटिश शासन के दौरान विवाद शुरू हुआ विवाद

1853 से 1855 के बीच में अयोध्या के मंदिरों को लेकर विवाद शुरू होने लगे।  रिपोर्ट बताती है कि उस वक्त सुन्नी मुसलमानों के एक गुट ने हनुमानगढ़ी मंदिर पर हमला कर दिया था। उनका दावा था कि यह मंदिर मस्जिद को तोड़कर बनाया गया है। हालांकि, इसका कोई भी साक्ष्य नहीं मिला।  

सर्वपल्ली गोपाल की किताब ‘एनाटॉमी ऑफ अ कन्फ्रंटेशन: अयोध्या एंड द राइज ऑफ कम्युनल पॉलिटिक्स इन इंडिया’ में भी इसका जिक्र है। किताब में यह भी कहा गया है कि उस वक्त हनुमानगढ़ी मंदिर बैरागियों के अधीन था और उन्होंने आसानी से मुसलमानों के गुट को हटा दिया था। 

एक हिंदू संप्रदाय, ने दावा किया कि बाबर के शासनकाल के दौरान एक हिंदू मंदिर Ram Mandir Ayodhya को ध्वस्त कर दिया गया था। अयोध्या में बाबरी मस्जिद स्थल पर धार्मिक हिंसा पहली बार 1853 में हुई थी।

छह साल बाद, अंग्रेजों ने साइट को दो हिस्सों में बांटने के लिए बाड़ लगा दी। मुसलमानों को मस्जिद के भीतर प्रार्थना करने की अनुमति दी गई । जनवरी 1885 में, महंत रघुबीर दास ने फैजाबाद जिला अदालत में एक अनुरोध प्रस्तुत किया, जिसमें मस्जिद के बाहर स्थित एक ऊंचे मंच रामचबूतरा पर एक छतरी के निर्माण की मंजूरी मांगी गई। हालाँकि, याचिका खारिज कर दी गई।

एक रिपोर्ट कहती है कि साल 1858 में निहंग सिखों के एक दल ने बाबरी मस्जिद के अंदर घुसकर हवन-पूजन किया था। उस वक्त इस घटना के खिलाफ पहली बार एफआईआर की गई थी और लिखित में यह विवाद सामने आया था। उसमें लिखा गया था कि अयोध्या में मस्जिद की दीवारों पर राम का नाम लिख दिया गया है और उसके बगल में एक चबूतरा बना है। 

Ram Mandir Ayodhya

जब शुरू हुआ Ram Mandir Ayodhya अयोध्या का नया अध्याय 

1936 में सबसे पहले साल मुसलमानों के दो समुदाय शिया और सुन्नी की लड़ाई हुई। दोनों ही समुदाय बाबरी मस्जिद पर अपना हक जता रहे थे। और दोनों की लड़ाई 10 साल तक खिंच गई। इस लड़ाई में जज द्वारा जो फैसला आया उसमें शिया समुदाय के दावों को खारिज कर दिया गया।

1949 में बाबरी मस्जिद के अंदर साल रामलला की मूर्ति मिली

1949 – बाबरी मस्जिद के अंदर भगवान राम की मूर्ति सामने आई। गोपाल सिंह विशारद नामक व्यक्ति ने देवता की पूजा करने के लिए फैजाबाद अदालत में याचिका दायर की और पुजारियों को दैनिक पूजा करने की अनुमति दी गई।। अयोध्या के निवासी हाशिम अंसारी ने अदालत का दरवाजा खटखटाया और कहा कि मूर्तियों को हटा दिया जाना चाहिए और इसे मस्जिद ही रहने दिया जाना चाहिए।

मामला बिगडता देख सरकार ने उस स्थान पर ताला लगा दिया लेकिन पुजारियों को दैनिक पूजा करने की अनुमति दी गई।

1961 – याचिका में मुसलमानों की संपत्ति लौटाने की मांग की गई –

सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने ,याचिकाकर्ता नेबाबरी मस्जिद को बोर्ड की संपत्ति घोषित करते हुए मुसलमानों की संपत्ति लौटाने की मांग करते हुए फैजाबाद सिविल कोर्ट में मुकदमा दायर किया दायर किया।

1980 के दशकRam Mandir Ayodhya राम मंदिर निर्माण के लिए अभियान शुरू

भगवान राम के जन्मस्थान को “मुक्त” करने और उनके सम्मान में एक मंदिर का निर्माण करने के उद्देश्य विश्व हिंदू परिषद पार्टी (वीएचपी) के नेतृत्व में एक समिति की स्थापनाकी गई थी।

1986 में अयोध्या अदालत के जिला न्यायाधीश ने हरि शंकर दुबे की याचिका पर विवादित मस्जिद के दरवाजे खोलने का आदेश जारी किया, जिससे हिंदू वहां पूजा कर सकें।ने मस्जिद को हिंदुओं के लिए प्रार्थना करने के लिए खोलने का आदेश दिया

इसके जवाब में मुसलमानों ने विरोध स्वरूप बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया।

राजीव गांधी के नेतृत्व वाली सरकार ने कोर्ट के निर्देश के अनुपालन में,बाबरी मस्जिद के दरवाजे खोलने का आदेश दिया

कोर्ट के फैसले से पहले सिर्फ हिंदू पुजारी को ही सालाना पूजा कराने का अधिकार था। फैसले के बाद, सभी हिंदुओं को साइट तक पहुंच की अनुमति दे दी गई, जिससे मस्जिद को हिंदू मंदिर के रूप में दोहरी भूमिका मिल गई।

Ram Mandir Ayodhya राम जन्मभूमि का विवाद  1984 से एक बार फिर से गरमाया

साल 1984 से एक बार फिर राम मंदिर आंदोलन की शुरुआत हुई थी। इसी समय बीजेपी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी को इस आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए चुना गया था। 

यूसी पांडे ने फैजाबाद सेशन कोर्ट में याचिका दायर की थी कि फैजाबाद सिटी एडमिनिस्ट्रेशन ने इसका गेट बंद करने का फैसला सुनाया था, इसलिए इसे खोला जाना चाहिए। साल 1986 में राजीव गांधी सरकार के आदेश पर बाबरी मस्जिद के अंदर का गेट खोला गया।

तब हिंदू पक्ष को यहां पूजा और दर्शन की अनुमति भी दे दी गई और बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी ने इसके खिलाफ प्रोटेस्ट भी किया। 

Ram Mandir Ayodhya राम मंदिर की नींव 1989 विहिप ने रखी

विहिप के पूर्व उपाध्यक्ष, न्यायमूर्ति देवकी नंदन अग्रवाल ने मस्जिद के स्थानांतरण का अनुरोध करते हुए एक मामला दायर कियाऔरविहिप ने बाबरी मस्जिद से सटी भूमि पर राम मंदिर का निर्माण शुरू किया। इसके बाद, फैजाबाद अदालत में लंबित चार मुकदमों को उच्च न्यायालय की एक विशेष पीठ में स्थानांतरित कर दिया गया।

बाबरी मस्जिद साल 1992 में गिराई गई

भारत के इतिहास में यह दिन दर्ज है जब 6 दिसंबर 1992 का वो दिन जब बाबरी मस्जिद को गिराया गया था, कारसेवकों ने यहां एक अस्थाई मंदिर की स्थापना भी कर दी थी। 

मस्जिद गिराने के 10 दिन बाद प्रधानमंत्री ने रिटायर्ड हाई कोर्ट जस्टिस एम.एस. लिब्रहान को लेकर एक कमेटी बनाई, जिसमें मस्जिद को गिराने और सांप्रदायिक दंगों को लेकर एक रिपोर्ट बनानी थी।  

नरसिम्हा राव की सरकार नेजनवरी 1993 आते-आते अयोध्या की जमीन को अपने अधीन ले लिया और 67.7 एकड़ जमीन को केंद्र सरकार की जमीन घोषित कर दिया गया। 

सुप्रीम कोर्ट SC ने 3:2 के बहुमत से अयोध्या में कुछ क्षेत्रों के अधिग्रहण अधिनियम की संवैधानिकता को बरकरार रखा। इस जजमेंट में यह भी कहा गया था कि कोई भी धार्मिक जगह सरकारी हो सकती है।

राम मंदिर की मांग साल 2002 में बढ़ने लगी

इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में हियरिंग शुरू हुई और अप्रैल 2002 में अयोध्या टाइटल डिस्प्यूट शुरू हुआ । 

ASI (आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया) ने मस्जिद वाली जगह पर अगस्त 2003 में खुदाई शुरू की और यह दावा किया कि इसके नीचे 10वीं सदी के मंदिर के साक्ष्य मिले हैं। 

Ram Mandir Ayodhya अयोध्या मामले का फैसला -30 सितंबर 2010

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस जमीन को तीनभागो में बांट दिया। इसके अंतर्गत1/3 हिस्सा निर्मोही अखाड़ा को, 1/3 हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को और 1/3 हिस्सा राम लला विराजमान को दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने इस हियरिंग को लेकर कहा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट का जजमेंट अजीब है, क्योंकि तीनों में से किसी भी पार्टी ने इसके लिए गुहार नहीं लगाई थी। 

इस फैसले ने पूरे देश में विवादों को जन्म दिया। इसके खिलाफ एक बार फिर से याचिका दायर हुई और साल 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट की रूलिंग को रोक दिया।

साल 2017 आते-आते चीफ जस्टिस खेहर ने तीनों पार्टियों को आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट के बारे में कहा। इसपर एक बार फिर से बहस शुरू हुई। 

Ram Mandir Ayodhya आखिरकार साल 2019 में आया ऐतिहासिक फैसला 

साल 2019 में 5 जजों की बेंच बनाई और पुराने 2018 वाले फैसले को खारिज कर दिया। 8 मार्च 2019 को दो दिन की सुनवाई के बाद जमीनी विवाद को आपसी सहमति से सुलझाने की बात एक बार फिर से कही गई। 

सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू पक्ष के हित में फैसला नवंबर 2019 आते-आते सुनाया और राम मंदिर को एक ट्रस्ट के जरिए बनवाने का आदेश दिया।

दिसंबर तक इस मुद्दे पर कई पिटीशन फाइल की गई और सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे को खारिज कर दिया इसके साथ सुन्नी वक्फ बोर्ड को 5 एकड़ जमीन दी गई, जहां अयोध्या में मस्जिद बनवाया जाना था। । 

लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फरवरी 2020 को श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की स्थापना हुई।। 

सुन्नी वक्फ बोर्ड ने 5 एकड़ जमीन को स्वीकार किया और अगस्त 2020 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राम मंदिर का शिलान्यास किया। 

अब 22 जनवरी 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ही रामलला की मूर्ति का प्राण-प्रतिष्ठा किया जाना है। 

नोट: यह कथा किसी भी राजनीतिक या धार्मिक विचार को व्यक्त नहीं करती है। यहां हमने केवल तथ्यों पर चर्चा की है। डीयू के एक प्रोफेसर ने भी इन जानकारियों की पुष्टि की है ।

 


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